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{{KKCatGhazal}}
<poem>
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखतें रखते हैं
बस एक ख़ुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा बना के रखतें रखते हैं
हमें पसंद नहीं जंग में भी चालाकी