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Kavita Kosh से
फिर ज़माने पे तब्सरा करना
एक सच्ची पुकार काफी काफ़ी है
हर घड़ी क्या ख़ुदा - ख़ुदा करना
ग़ैर -मुमकिन भी है गुनाह भी है
पर को परवाज़ से जुदा करना