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कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती, कहीं पे व़फा
बड़े करीने क़रीने से घर को सजा के रखते हैं
अनापसंद हैं `हस्ती' जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं
</poem>
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