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{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर शर्मा 'मैथिल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ग़ज़ल का मेरी क्यूँ उनवाँ मिटाए जाते हो।
मेरे ही सामने मुझ को हटाए जाते हो॥
खुद के सामने किस हैसियत से जाओगे।
खुद की नज़रों से खुद को गिराए जाते हो॥
जले हुओं को जला कर न चैन पाओगे।
डरो-डरो क्यूँ ये तोहमत उठाए जाते हो॥
ग़ज़ल है ज़िंदगी एहसास उसका उनवाँ है।
किसी ग़ज़ल का क्यूँ उनवाँ मिटाए जाते हो॥
शबें फ़ुर्कत में भी शहनाइयाँ बजाते हो।
किसी रोने पर क्यूँ मुस्कराए जाते हो॥
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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ग़ज़ल का मेरी क्यूँ उनवाँ मिटाए जाते हो।
मेरे ही सामने मुझ को हटाए जाते हो॥
खुद के सामने किस हैसियत से जाओगे।
खुद की नज़रों से खुद को गिराए जाते हो॥
जले हुओं को जला कर न चैन पाओगे।
डरो-डरो क्यूँ ये तोहमत उठाए जाते हो॥
ग़ज़ल है ज़िंदगी एहसास उसका उनवाँ है।
किसी ग़ज़ल का क्यूँ उनवाँ मिटाए जाते हो॥
शबें फ़ुर्कत में भी शहनाइयाँ बजाते हो।
किसी रोने पर क्यूँ मुस्कराए जाते हो॥
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