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Kavita Kosh से
तन से मैले कुचैले रहे हम सदा
रहती दिल में हमारे सफाई सफ़ाई मगर,
मेरी धनिया की चूनर तो मैली फटी
धानी चूनर धरा को उढ़ाई मगर l