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Kavita Kosh से
अर्थ-स्वामी खड़े मोलते रह गये।
अश्रु उनके न पोछे पोंछे किसी ने कभी,
व्यर्थ ही लोग जय बोलते रह गये।
पृष्ठ के पृष्ठ हम खोलते रह गये।
आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
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