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Kavita Kosh से
मनुष्य को कभी मिटा नहीं पाओगे ।
यही सब कहता हूँ किसी उधेड़बुन और तकलीफ तकलीफ़ में
आसपास की हवा लोहे सरीखी भारी और गर्म है
शाम दूर तक फैला हुआ एक बियाबान