भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आगा-पीछा सोच-सोच के मौसम अपने पत्ते खोले ।
रो लेने से ख़्वाबों पर जो ग़र्द गर्द पड़ी है, धुल जाती है,
रोना एक जीवन उत्सव है आ मेरे संग तू भी रो ले ।
दिल की जेब है ख़ाली-ख़ाली, अटे पड़े शब्दों के झोले ।
मित्र-भाव शारीरिक हैं लेकिन दुश्मनियाँ हुईँ हुईं दिमाग़ी,
जैसे कोई मंजा खिलाड़ी हाथ जोड़ के जेब टटोले ।
आओ चल के लौटा दें हम जीते हुए मौहल्ले-टोले ।
सीमा के उस पार है साजिश साज़िश सीमा के इस पार इलेक्शन,
अब के झण्डारोहण में फूलों की जगह झरे हथगोले ।
<poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,998
edits