भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
विहंगम-मधुर स्वर तेरे,
मदिर हर तार है मेरा!
विहंगम-मधुर स्वर तेरेरही लय रूप छलकातीचली सुधि रंग ढुलकातीतुझे पथ स्वर्ण रेखा,<br>चित्रमयमदिर हर तार संचार है मेरा!<br><br>
रही लय रूप छलकाती<br>तुझे पा बज उठे कण-कणचली सुधि रंग ढुलकाती<br>मुझे छू लासमय क्षण-क्षण!तुझे पथ स्वर्ण रेखाकिरण तेरा मिलन, चित्रमय<br>झंकार-संचार सा अभिसार है मेरा!<br><br>
तुझे पा बज उठे कण-कण <br>धरा से व्योम का अन्तर,मुझे छू लासमय क्षण-क्षण!<br>रहे हम स्पन्दनों से भर,किरण निकट तृण नीड़ तेरा मिलन, झंकार-<br>धूलि कासा अभिसार आगारा है मेरा!<br><br>
धरा से व्योम का अन्तरन कलरव मूल्य तू लेता,<br>रहे हम स्पन्दनों से भरह्रदय साँसे लुटा देता,<br>निकट तृण नीड़ तेरासजा तू लहर-सा खग, धूलि का<br> आगारा दीप-सा श्रृंगार है मेरा!<br><br>मेरा।
न कलरव मूल्य तू लेता,<br>चुने तूने विरल तिनकेह्रदय साँसे लुटा देतागिने मैंने तरल मनके,<br>सजा तू लहर-सा खगतुझे व्यवसाय गति है,<br>दीप-सा श्रृंगार प्राण का व्यापार है मेरा।<br><br>मेरा!
चुने तूने विरल तिनके<br>गगन का तू अमर किन्नर,गिने मैंने तरल मनकेधरा का अजर गायक उर,<br>तुझे व्यवसाय गति मुखर है,<br>शून्य तुझसे लय भराप्राण का व्यापार यह क्षार है मेरा!<br><br>मेरा।
गगन का उड़ा तू अमर किन्नरछंद बरसाता,<br>धरा का अजर गायक उरचला मन स्वप्न बिखराता,<br>मुखर है शून्य तुझसे लय भरा<br>अमिट छवि की परिधि तेरी,यह क्षार अचल रस-पार है मेरा।<br><br>मेरा!
उड़ा तू छंद बरसाता,<br>चला मन स्वप्न बिखराता,<br>अमिट छवि की परिधि तेरी,<br>अचल रस-पार है मेरा!<br><br> बिछी नभ में कथा झीनी,<br>घुली भू में व्यथा भीनी,<br>तड़ित उपहार तेरा, बादलों-<br>सा प्यार है मेरा!<br><br/poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,373
edits