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मिलन में भी / कविता भट्ट

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'''13-पत्थर होती अहल्या'''
मदमस्त इंद्र गौतम भी वैसा वैसे ही सशंकित क्रुद्धकिन्तु, राम हो गया गए तटस्थ द्रष्टासंभवतः ; स्पर्श करना भूल गया हैगए हैं;इसीलिए शिलाएँ अब
पुनः अहल्या नहीं बन पाती
टूटती-पिसती हैं