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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश चन्द्र शौक़
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[[Category:ग़ज़ल]]
कभी इस दिल में उतर कर देखें

प्यार का गहरा समंदर देखें


अपनापन अस्ल में कहते हैं किसे

मेरे घर पर कभी आकर देखें


सैंकड़ों बार तुम्हें देख चुके

फिर भी हसरत है मुकरर्र देखें


ज़ेब—ए—रुख़ कीजे हया का ग़ाज़ा

कितना सजता है यह ज़ेवर देखें


अपने हाथों की लकीरों में ज़रा

है कहीं मेरा मुक़द्दर देखें


शौक़ जो गिनते हैं ऐब औरों के

वो कभी अपने भी अन्दर देखें.



मुकर्रर=पुन: ; ग़ाज़ा = पाउडर, मुखलेप, ज़ेबे—रुख़= गाल पर सुसज्जित करना; ऐब= अवगुण