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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत
}}
<poem>
लाई हूँ फूलों का हास,
लोगी मोल, लोगी मोल ?
तरल तुहिन-बन का उल्लास
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
फैल गई मधु-ऋतु की ज्वाल,
जल-जल उठतीं बन की डाल,
कोकिल के कुछ कोमल बोल
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
उमड़ पड़ा पावस परिप्रोत,
फूट रहे नव-नव जल-स्रोत
जीवन की ये लहरें लोल,
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
विरल जलद-पट खोल अजान
छाई शरद-रजत-मुस्कान,
यह छवि की ज्योतस्ना अनमोल
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
अधिक अरुण है आज सकाल --
चहक रहे जग-जग खग-बाल,
चाहो तो सुन लो जी खोल
::कुछ भी आज ना लूँगी मोल !
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत
}}
<poem>
लाई हूँ फूलों का हास,
लोगी मोल, लोगी मोल ?
तरल तुहिन-बन का उल्लास
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
फैल गई मधु-ऋतु की ज्वाल,
जल-जल उठतीं बन की डाल,
कोकिल के कुछ कोमल बोल
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
उमड़ पड़ा पावस परिप्रोत,
फूट रहे नव-नव जल-स्रोत
जीवन की ये लहरें लोल,
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
विरल जलद-पट खोल अजान
छाई शरद-रजत-मुस्कान,
यह छवि की ज्योतस्ना अनमोल
::लोगी मोल, लोगी मोल ?
अधिक अरुण है आज सकाल --
चहक रहे जग-जग खग-बाल,
चाहो तो सुन लो जी खोल
::कुछ भी आज ना लूँगी मोल !
</poem>