भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
किससे की होगी ज़िद
अपनी पसन्दीदा चीज़ों के लिए
किसकी पीठ पर बैठकर हँसी हंसी होंगी तुम ?
तुम्हें हँसते हंसते हुए देखे हो गए कई बरस
तुम्हारा वह पहली बार 'जणमणतण' गाना
पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना
जिनमें लगे होते थे चूँचूँ करते खिलौने ।
अब तो बदल गयी गई होगी तुम्हारी आँख भी
हो सकता है तुम्हें मैं न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से
लेकिन मैं पहचान जाऊँगा तुम्हारी आँख के तिल से