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<poem>
वक़्त का दरिया तो हम पार नही कर सकते
करना चाहे भी तो हम यार नही कर सकते

भूल जाना भी कोई काम हुआ करता है
काम ये आपके बीमार नही कर सकते

हारते शख़्स ने आखिर में दलीलें छोड़ी
अब निहत्थे पे तो हम वार नही कर सकते

वादा कर सकते है आएँगे न तेरी जानिब
हाँ मगर बीच में दीवार नही कर सकते

क्यूँ सदा ढूँढने होते है बहाने हम को
क्यूँ कभी खुल के हम इन्कार नही कर सकते

हमसे इज़हार के आदाब नही हो पाये
हम किसी शाख को मिस्मार नही कर सकते

दूसरे इश्क़ में पहले सा भरम मत रखना
एक गलती तो कई बार नही कर सकते

हम कहीं ले चले ये जिस्म उदासी के बगैर
खुद को अब इतना भी तैयार नही कर सकते
</poem>
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