भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मैं सोचती हूँ —
तुमने छुटपन में
कितनी खूबसूरत कविताओं को जिया जीया
मैं उन्ही की पुनर्व्याख्या कर रही हूँ ।
मैं कविता के विरसे में लिखूँगी