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{{KKRachna
|रचनाकार=गौहर उस्मानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
ग़म देते हैं तो इज़्तिराब न दे
ज़िंदगी दे मगर अज़ाब न दे
मुस्कुराने के हैं कई मफ़्हूम
मुस्कुरा कर कोई जवाब न दे
इस की ता'बीर किस से पूछूँगा
मेरी आँखों को कोई ख़्वाब न दे
ख़ुद-शनासी मिटाए देता है
ऐश इतना भी बे-हिसाब न दे
मुझ को जो चाहे दे सज़ा लेकिन
मस्लहत की कोई नक़ाब न दे
तेरी ज़िद है यही अगर साक़ी
ज़हर दे दे मगर शराब न दे
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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ग़म देते हैं तो इज़्तिराब न दे
ज़िंदगी दे मगर अज़ाब न दे
मुस्कुराने के हैं कई मफ़्हूम
मुस्कुरा कर कोई जवाब न दे
इस की ता'बीर किस से पूछूँगा
मेरी आँखों को कोई ख़्वाब न दे
ख़ुद-शनासी मिटाए देता है
ऐश इतना भी बे-हिसाब न दे
मुझ को जो चाहे दे सज़ा लेकिन
मस्लहत की कोई नक़ाब न दे
तेरी ज़िद है यही अगर साक़ी
ज़हर दे दे मगर शराब न दे
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