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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा –'''
दया कंस की देखकै, हुई देवकी मौन।
अपने आप ही सोचती, है ईश्वर की रोण।।

'''दौड़/राधेश्याम/वार्ता/सरड़ा/जकड़ी :-'''
बोली बेटे को गोदी ले, भाई तेरा है करम भला।
कंस बली भी भैना को, धीरज दे उल्टा लौट चला।।
मुनी नारद ने ख्याल किया, जो काम कंस बुरा करै नहीं।
जल्दी से जल्दी उसका वो, घड़ा पाप का भरै नहीं।।
माया रूपी ऋषि नारद, चलकर मथुरा में आता है।
दरबार कंस का लगा हुआ, नारद मुनी वचन सुनाता है।।
कंस भी उठकर गद्दी से, मुनी नारद का सत्कार करै।
बोला मुझको समझाओ, अब आगे क्या कंस विचार करै।।
लडक़ा हुआ देवकी के, मैंने नहीं उसको मारा है।
बुरा करा या भला करा, कहदो क्या ख्याल तुम्हारा है।।
हंसा ऋषि जी न्यूं कह कर, ये कंस भूल तेरी भारी है।
तेरे सर पर मौत पुकार रही, अक्ल ग्रह ने मारी है।।
आठ दिशा की आठ लकीर, खेंच के ऋषि बताता है।
ओ कंस देखले तू गिनके, यहां कौण आठवां आता है।।
जिस जगह से उनको गिनता, है वही आठवां होता है।
कंस के मन में जचा दई, क्यों जान भूल में खोता है।।
चरण पकड़ लिए नारद के, और हाथ जोड़ के न्यूं बोला।
क्या करूं बताओ मुझे ऋषि, मेरा मौत के डर से मन डोला।।
</poem>
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