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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}<poem>हृदय छोटा हो,<br>::तो शोक वहां नहीं समाएगा।<br>और दर्द दस्तक दिये बिना<br>::दरवाजे से लौट जाएगा।<br>टीस उसे उठती है,<br>::जिसका भाग्य खुलता है।<br>वेदना गोद में उठाकर<br>::सबको निहाल नहीं करती,<br>जिसका पुण्य प्रबल होता है,<br>::वह अपने आसुओं से धुलता है।<br>तुम तो नदी की धारा के साथ <br>::दौड़ रहे हो।<br>उस सुख को कैसे समझोगे,<br>::जो हमें नदी को देखकर मिलता है।<br>और वह फूल <br>::तुम्हें कैसे दिखाई देगा,<br>जो हमारी झिलमिल <br>::अंधियाली में खिलता है?<br>हम तुम्हारे लिये महल बनाते हैं<br>::तुम हमारी कुटिया को<br>:::देखकर जलते हो।<br>युगों से हमारा तुम्हारा<br>::यही संबंध रहा है।<br>हम रास्ते में फूल बिछाते हैं<br>::तुम उन्हें मसलते हुए चलते हो। <br>दुनिया में चाहे जो भी निजाम आए,<br>तुम पानी की बाढ़ में से<br>::सुखों को छान लोगे।<br>चाहे हिटलर ही<br>::आसन पर क्यों न बैठ जाए,<br>तुम उसे अपना आराध्य <br>::मान लोगे।<br>मगर हम?<br>::तुम जी रहे हो,<br>:::हम जीने की इच्छा को तोल रहे हैं।<br>आयु तेजी से भागी जाती है<br>और हम अंधेरे में<br>::जीवन का अर्थ टटोल रहे हैं।<br>असल में हम कवि नहीं,<br>::शोक की संतान हैं।<br>हम गीत नहीं बनाते,<br>::पंक्तियों में वेदना के<br>:::शिशुओं को जनते हैं।<br>झरने का कलकल,<br>::पत्तों का मर्मर<br>और फूलों की गुपचुप आवाज़,<br>::ये गरीब की आह से बनते हैं।</poem>
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