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<poem>
एक ख़ामोशी ने सदा पायी
ढाई हर्फ़ों में फिर वो हकलाई

चार दीवार चन्द छिपकलियाँ
हिज्र की रात के तमाशाई

डूबने का उसे मलाल नहीं
जिसने देखी नदी की रानाई

आख़िरी ट्रैन थी तिरी जानिब
जो ग़लत प्लेटफॉर्म पर आयी

बारिशों ने हमें उदास किया
सील दीवार में उतर आयी
</poem>
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