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{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वेश अस्थाना
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
मित्र तुम्हारे जैसा मिलना।
यूं लगता रेतीले जग में
बह आया हो मीठा झरना।
नीरवता एकाकीपन की
भरी भीड़ में सूनेपन की
टूटे सपनो के जंगल में
पगडण्डी मन की ठनगन की।
तुम आये जीवंत हो गयी
युगों युगों की विवश कल्पना।।
टूटे छंद, व्याकरण रूठी
शब्द संहिता दरकी फूटी
संबंधों का बंजर आँगन
स्नेह वीथिका की छत टूटी
तुम आये तो सुदृढ़ हो गयी
मन कविता की भाव व्यंजना।।
</poem>
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|संग्रह=
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मित्र तुम्हारे जैसा मिलना।
यूं लगता रेतीले जग में
बह आया हो मीठा झरना।
नीरवता एकाकीपन की
भरी भीड़ में सूनेपन की
टूटे सपनो के जंगल में
पगडण्डी मन की ठनगन की।
तुम आये जीवंत हो गयी
युगों युगों की विवश कल्पना।।
टूटे छंद, व्याकरण रूठी
शब्द संहिता दरकी फूटी
संबंधों का बंजर आँगन
स्नेह वीथिका की छत टूटी
तुम आये तो सुदृढ़ हो गयी
मन कविता की भाव व्यंजना।।
</poem>