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{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
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{{KKCatNazm}}<poem>
धूल में लिपटे चेहरे वाला
 
मेरा साया
 
किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा
 
ओस में भीगी यह पगडंडी
 
आगे जाकर मुड़ जाती है
 
कतबों की ख़ुशबू आती है
 
घर वापस जाने की ख़्वाहिश
 
दिल में पहले कब आती है
 
इस लम्हे की रंग-बिरंगी सब तस्वीरें
 
पहली बारिश में धुल जाएँ
 
मेरी आँखों में लम्बी रातें घुल जाएँ।
</poem>
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