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सवारे-बेसमंद / शहरयार

45 bytes added, 14:52, 29 सितम्बर 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>
ज़मीन जिससे छुट गई
 
बाब ज़िन्दगी का जिस पे बन्द है
 
वो जानता है यह कि वह सवारे-बेसमंद है
 
मगर वो क्या करे,
 
कि उसको आसमाँ को जाने वाला रास्ता पसन्द है।
 
 
'''शब्दार्थ :'''
 
सवारे-बेसमंद=बिना घोड़े का सवार; बाब=दरवाज़ा
</poem>
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