भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शंकरलाल द्विवेदी / परिचय

18 bytes added, 18:19, 2 दिसम्बर 2020
श्री द्विवेदी के कृतित्व में जीवन का स्पंदन तथा द्वंद्व सम-भाव से उपस्थित है। यह अक्षर-सम्पदा सचमुच अक्षर-सम्पदा ही है। श्री द्विवेदी में गहन-सौन्दर्य-बोध विद्यमान था, यह उनके कृतित्व में भी परिलक्षित होता है। नारी-सौन्दर्य के प्रति उनके चिन्तन में दिव्य-चेतना दिखाई देती है। वे अनुरागी हैं, तो वैरागी भी हैं। उनके काव्य में ग्रामीण परिवेश की मानसिक संरचना बिलकुल संतों की वाणी के समान सुनाई पड़ती है। राजनैतिक मतवादों के प्रति बंधन-मुक्त रहते हुए भी वे सामयिक राजनीति के प्रति काव्यात्मक स्तर पर संवेदनशील जान पड़ते हैं।
'''''ताजमहल, शीष कटते हैं, कभी झुकते नहीं, इस तिरंगे को कभी झुकने न दोगे, गाँधी-आश्रम, निर्मला की पाती, देश की माँटी नमन स्वीकार कर, विश्व-गुरु के अकिंचन शिष्यत्व पर''''' जैसी अनेक कालजयी कविताओं के वे सर्जक रहे। रहे हैं। समकालीन कविता में उनका स्वर ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र के समान मुखरित हुआ। उनकी कविता गहन-सामाजिकता से व्युत्पन्न कविता है, वे जनकवि के रूप में विख्यात रहे हैं। किन्तु उनकी यह लोकचिंतन-काव्य धारा, उनका समूचा कृतित्व आज तक केवल पांडुलिपियों के पन्नों में क़ैद ही रहा है। मरणोपरांत प्रकाशित उनकी एकमात्र कृति 'अन्ततः' प्रकशित हो कर भी गुमनामी के गह्वर में खो गई तथा पृष्ठों पर अंकित हो कर भी घर की दीवारों तक ही सिमट कर रह गयी। यह स्थिति अत्यंत दु:खद व कष्टप्रद लगती है।
माँ शारदे के वरद पुत्र तथा माँ भारती के इस अमर गायक का २७ जुलाई, १९८१ को एक सड़क दुर्घटना में महाप्रयाण हो गया। क्रूर काल -गति ने मात्र ४० वर्ष की अल्पायु में ही श्री द्विवेदी को अपने परिवारीजन, काव्य-जगत के अनेकानेक प्रशंसकों व मित्रों से सदा-सदा के लिए दूर कर दिया, जबकि अपने कृतित्व से वे प्रसिद्धि के शिखर पर अपना परचम फहराने के अधिकारी हो चुके थे।
124
edits