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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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तजरबे कीजिए मज़ीद नये
हो भी सकते हैं ग़म मुफ़ीद नये

आंसुओ को ग़िज़ा मुहैया कर
ज़ख्म दुनिया से कुछ ख़रीद नये

क़ैस की सफ़ में हमको शामिल कर
इश्क़ हम हैं तेरे मुरीद नये

एंड पिक्चर यहां पे थोड़ी है
और अभी आएंगे यज़ीद नये

कौन रिश्ते बहाल करता है
राज़ इफ़शा करेगी ईद नये

रात होने दो फिर बताएंगे
ज़ख्म किस दर्जा हैं शदीद नये

</poem>