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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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ज़ख्म दिल का दिखा दिया है उसे
हंस रहा था रुला दिया है उसे

उसको अब सच भी सच नहीं लगता
झूट इतना दिखा दिया है उसे

आप जिस को ज़मीर कहते हैं
मर चुका, या सुला दिया है उसे

शोहरतों की शराब नोशी ने
कितना नीचे गिरा दिया है उसे

उस तरफ़ भीड़ चलती रहती है
जिस तरफ़ भी चला दिया है उसे
</poem>