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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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किया जाता है बस आराम दिन भर
हमारा है यही अब काम दिन भर
हमारे सर पे इक इल्ज़ाम रख के
मचाया जाएगा कोहराम दिन भर
सुना है मैकदा फिर खुल गया है
चलेंगे जाम पर अब जाम दिन भर
नहीं है याद कुछ तेरे अलावा
रटा जाता है तेरा नाम दिन भर
हमारे दुश्मनों करना है तुमको
करेक्टर पर हमारे काम दिन भर
तक़ाज़ा है यही इंसानियत का
करें इंसानियत को आम दिन भर
तड़पने के अलावा क्या करेगा
मोहब्बत में दिल ए नाकाम दिन भर
</poem>
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किया जाता है बस आराम दिन भर
हमारा है यही अब काम दिन भर
हमारे सर पे इक इल्ज़ाम रख के
मचाया जाएगा कोहराम दिन भर
सुना है मैकदा फिर खुल गया है
चलेंगे जाम पर अब जाम दिन भर
नहीं है याद कुछ तेरे अलावा
रटा जाता है तेरा नाम दिन भर
हमारे दुश्मनों करना है तुमको
करेक्टर पर हमारे काम दिन भर
तक़ाज़ा है यही इंसानियत का
करें इंसानियत को आम दिन भर
तड़पने के अलावा क्या करेगा
मोहब्बत में दिल ए नाकाम दिन भर
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