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{{KKRachna
|रचनाकार= कविता भट्ट
|संग्रह=
}}
[[Category:चोका]]
<poem>
देनी है तुम्हें
गुरु-दक्षिणा कुछ
ओह! जिन्दगी
पाठशाला के बिन
सिखाया मुझे
गिर के सँभलना।
मुखौटे सभी
तुमने तो उतारे
जब भी किए
दुःख ने पन्नों पर
गहरे हस्ताक्षर।
</poem>
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|रचनाकार= कविता भट्ट
|संग्रह=
}}
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<poem>
देनी है तुम्हें
गुरु-दक्षिणा कुछ
ओह! जिन्दगी
पाठशाला के बिन
सिखाया मुझे
गिर के सँभलना।
मुखौटे सभी
तुमने तो उतारे
जब भी किए
दुःख ने पन्नों पर
गहरे हस्ताक्षर।
</poem>