भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मधुर है प्यार,लेकिन क्या करूँ मैं
जमाने का ज़हर मेरे लिए है
नदी के साथ मैं,पहुँचा
किसी सागर किनारे
गई ख़ुद डूब ,मुझ को
छोड़ लहरों के सहारे