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Kavita Kosh से
<Poem>
सत्य है, हमने बहुत संघर्ष झेले ।
किन्तु वे सब हमारे मन में हुए थे ।
नहीं छू, देख, सुन पाए ।
अरे, हम तो विचारों में जिए थे ।
मैं आशाओं में जीवित हूँ ।
वह लहर अभी उठकर छू लेगी चाँद,