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दराज़ / इब्बार रब्बी

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<poem>
बीच की दराज मेम में बन्द हूं ।
ऊपर होता हूं तो
पैर टूटता है
नीचे सरकता हूं
सिर फूटरा फूटता है ।
मैं कहां जाऊं !
क्या करूं !
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