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अम्बर धरे / कविता भट्ट

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<poem>
1
रवि न जाने
झील के मन पीर
सुखाए नीर।
2
नभ निहारे
झील का दरपन
मुस्काए मन।
3
चन्दा-बदरी
मन झील किनारे
केश सँवारे।
4
झील के तन
पवन छेड़ती है
जलतरंग।
5
'''अम्बर धरे'''
'''मधु- झील अधर'''
'''सिहरे तन।'''
6
झील है मन
पीड़ा नित कंकर
उठे तरंग।
7
झील खोई है
विरहिणी- सी बैठी
एक किनारे।
8
सूखे न हारे
दृढ़- झील, पिय की
बाट निहारे।
9
सजे-सँवरे
झुरमुट के घेरे
झील लेती रे!
10
बगुला प्रेमी
अवाक् होके निहारे
झील के तीरे।
</poem>