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{{KKRachna
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
|अनुवादक=गेरू की लिपियाँ / अमरनाथ श्रीवास्तव
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छतनार क्या हुआ,
सोच रही लौटी
ससुराल से बुआ।बुआ ।
झगड़े में है महुआ
डाल का चुआ।चुआ ।
कैसा-कैसा अपना
ख़ून है मुआ।मुआ ।
बाबू पसरे जैसे
हारकर जुआ।जुआ ।
साझे का है भूखा
सो गया सुआ।सुआ ।
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