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|संग्रह=मलाई जिन्दगी नै दुख्दछ / सुमन पोखरेल
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<poem>
कता कता मन पराएँ कहाँ मन पराएँ
तिमीलाई मैले जहाँ तहाँ मन पराएँ

धेरै पनि हैन एकै चोटी भेटेँ
मानौ तिमीभित्र आफैँलाई भेटेँ
बोलि मन पराएँ अधरमा मन पराएँ
तिमीलाई मैले जहाँ तहाँ मन पराएँ

कुनै चिज नौलो देखेँ मैले तिमीमा
किन मन पराएँ खै के देखेँ तिमीमा
मुस्कान मन पराएँ शरीरमा मन पराएँ
तिमीलाई मैले जहाँ तहाँ मन पराएँ
</poem>
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