भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामकिशोर दाहिया }} {{KKCatNavgeet}} <poem> तैर र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
तैर रही
आंँखों में दहशत
पकड़ा जाता नहीं लुटेरा
चिंताजनक
समय का पहिया
घेरे दिन को खड़ा अंँधेरा.

टोले, मँजरे,
गांँव, मुहल्ले
देते शहर सरीखे चीरा
आतंकों के
बीच सुरक्षा भार
ऊँट के मुंँह में जीरा
सून गली
पगडण्डी देखे
चिल्लाने के बाद सवेरा.

मनचली रंगीन
हवा भी, आज
हुनर को दांँव लगाये
खींच-तान
चंदन की सोंधी
लाद पीठ पर घर को लाये
चोरी और डकैती
खाकर, आंँख
खोलता नहीं उजेरा.

बढ़ता ग्राफ
जुर्म का ऊपर
भ्रष्टाचार न माने सीमा
फूल कली पर
चढ़ता हंँसकर
जहर धूप का धीमा-धीमा
इस उजाड़ से
पहले आये
माली धरे बाग में डेरा.


-रामकिशोर दाहिया

</poem>