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{{KKRachna
|रचनाकार=फूलचन्द गुप्ता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
घर के पास नदी होती थी ।
जिसमें माँ कपड़े धोती थी ।
बच्चे को कनियाँ में लेकर,
बोझा मूड़ें पर ढोती थी ।
चूल्हे-चक्की से फुरसत पा,
खेतों में जड़हन बोती थी ।
अम्मा की यादों की खूँटी,
दादा का कुर्ता धोती थी ।
बटुली में अदहन रखकर माँ,
घण्टों तक छिप-छिप रोती थी ।
सबसे पहले सोकर उठती,
सब सो जाएँ, तब सोती थी ।
मैं मीज़ान समझ ना पाया,
क्या पाकर माँ सब खोती थी ।
</poem>
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|रचनाकार=फूलचन्द गुप्ता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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घर के पास नदी होती थी ।
जिसमें माँ कपड़े धोती थी ।
बच्चे को कनियाँ में लेकर,
बोझा मूड़ें पर ढोती थी ।
चूल्हे-चक्की से फुरसत पा,
खेतों में जड़हन बोती थी ।
अम्मा की यादों की खूँटी,
दादा का कुर्ता धोती थी ।
बटुली में अदहन रखकर माँ,
घण्टों तक छिप-छिप रोती थी ।
सबसे पहले सोकर उठती,
सब सो जाएँ, तब सोती थी ।
मैं मीज़ान समझ ना पाया,
क्या पाकर माँ सब खोती थी ।
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