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<poem>
आँख मींच ले सच्चाई पर,
मत होंठो को खोल जमूरे ।

प्रश्न नहीं हैं जिनके उत्तर,
उन प्रश्नों पर कान नहीं दे ।
आत्ममुग्ध हो सुनते जाना,
निन्दाओं पर ध्यान नहीं दे ।

डाल बुद्धि पर कुलुफ़ कड़ा तू
जय जय जय बस बोल जमूरे ।

उसके सिर रख इसकी टोपी,
खूब अफ़र कर पल्लेदारी ।
दरबारी रागों को गाकर,
पुख़्ता कर ले दावेदारी ।

दबा काँख में भले कटारी,
मुँह में मिश्री घोल जमूरे ।

समाधान की बात करें जो,
उन क़लमों की नोंक तोड़ दे ।
समरसता के गीत पढ़ें जो,
उनकी दुखती रग मरोड़ दे ।

भली करेंगे राम फोड़ तू,
सद्भावों के ढोल जमूरे ।
</poem>
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