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Kavita Kosh से
कटी गर्दन के ख़ून सने होंठ
तलवारों ने याद किये किए अपने-अपने पाप
भीतर तक भर गईं
मृत्यु- बोध से जन्मी अपराध-पीड़ा से
तलवारों ने याद किया
और योद्धा की आँखों में दौड़ गई थी
कोई सात-आठ साल की ख़ुश
बाँह फैलाए , दौड़ती पास आती हुई लड़की
दोनों तलवारों ने
विनाश की यन्त्रणा लिए