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|रचनाकार=यशोधरा रायचौधरी
|अनुवादक=मीता दास
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<poem>
सच क्या घटा था ? कहाँ घटा था ?
स्मरण नहीं कर पा रहा ।
हमें भुला दिया जाएगा ।
हमें भुला दिया जाता है ।
सच क्या घटा था ? क्यों मार खाई ? क्यूँ खून लगा है ?
शरीर को क्यूँ बाँसों से रगड़ा गया ?
गुहा के द्वार पर वेदना का विस्फोट ?
स्मरण नहीं कर पा रहा ।
सब कुछ धुँधला-धुँधला, छाया-छाया सा लगता है
हमें समझा दिया गया है
आदमी जब तक ज़िन्दा है, तब तक है आशा ।
मृत आदमी अब कोई वक्तव्य नहीं रख सकते ।
हमें समझा दिया गया है
दुष्ट का दमन और शिष्टता का पालन
यही तो सामान्य तौर पर होना था घटित
और यही तो घटा था .... इसलिए, डर नहीं अब
इसलिए, इसे याद नहीं रखना है ।

हमें भुला दिया जाएगा, जानकर भी
हमारी स्मृतियों ने, विश्वासघात किया है ।
हम नहीं भूले ।

'''मूल बांगला से अनुवाद : मीता दास'''
</poem>
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