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क़लम का गीत / रमेश रंजक

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<poem>
क़लम में आग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।

कहाँ हैं शब्द के अँगार उनमें
क़लम जिनकी ख़रीदी जा चुकी है
लिखेंगे क्या ? गुनाहों की कहानी
जिन्हें मोटी रक़म हथिया चुकी है

तपस्या त्याग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।

क़लम बिकती नहीं है सिर्फ़ उसकी
जुड़ा है जो ज़मीं से, आदमी से
उसी ने चेतना को नोक दी है
दुखी है जो समय की त्रासदी से

रगों में राग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।
</poem>
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