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कोकिल ! / रमेश रंजक

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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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<poem>
कोकिल !
विकृत स्वरों में नहीं बोलता,
पर जब भी बोलता है
पञ्चम में बोलता है,
उसकी आवाज़ में पैनी मिठास होती है,
मिठास में तेज़ लय होती है,
कोकिल !
लय की ख़ूबियों को जानता है,
इन स्वरों को
शब्दों से पहले पहचानता है ।

कोकिल !
छप्पर या मुण्डेर पर
उठाईगीरों की तरह नहीं बैठता

</poem>
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