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|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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<poem>
सबसे पहले प्रतिमाएँ विदा हुईं । उसके कुछ ही बाद पेड़
लोग और पशु / जगह
पूरी तरह वीरान हो गई । एक हवा आई । सड़कों पर
अख़बार उड़ते रहे और काँटेदार टहनियाँ ।
रात में सड़कों पर स्वेच्छा से बत्तियाँ जल उठीं ।
एक आदमी ख़ुद-ब-ख़ुद लौट आया; उसने चारों ओर देखा,
फिर एक चाबी निकाली, और उसे ज़मीन में इस तरह दबाया
गोया उसे किसी ज़मींदोज़ हाथ को थमा रहा हो ।
या एक पेड़ लगा रहा हो । बाद में उसने संगमरमर की सीढ़ियाँ
चढ़ीं और शहर को देखा ।
प्रतिमाएँ एक-एक करके, सावधानी के साथ लौट आईं ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>
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