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<poem>
वही बचपन के मण्डराते बादल
चींटा भी नहीं बताता
कि जल्दी है उन्हें कहाँ की ।

जीवित रहो, प्रेम किया
और तीस साल की उम्र में
मुझे क़ैदी की पोशाक पहना दी गई ।
आज भी देखती हूँ बादल
सिर्फ़ एक अन्तहीन बिछोह है ।

प्रेम मरा, घुटा
विकृत हो गया —
सफ़ेद दीवार की बुनियाद पर
अपराधी औरतें
गूँथ रही हैं पीले फूलों की मालाएँ रासलीला के लिए
और दण्ड की कोठरियों की पीली दीवारों पर
उन बीमार प्रेमों की
भद्दी उत्तेजना खोद दी गई है ।

कौन जाने
जीवन यह है
या वह
जो था ।

'''मूल फ़िनिश भाषा से अनुवाद : सईद शेख'''
</poem>
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