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{{KKRachna
|रचनाकार=बेल्ला अख़्मअदूलिना
|अनुवादक=वरयाम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेघगर्जनाओं की फैली है अव्यवस्था आकाश में,
लिखना नहीं है मुझे कुछ भी उसके विषय में।
भेंट करनी है उसे स्वतंत्रता
अचर्चित बने रहने
और जल-ग्रहण कर रही पृथ्वी के
ऊपर लटके रहने की।
मैं क्या आज उसकी न्यायाधीश हूँ
कहूँ कि उसकी प्रशस्ति देती है आनन्द !
सम्बन्धों के ऊँच-नीच के गणित की अवज्ञा करते हुए
बैठा दूँ अपने को भयाक्रांत उद्यान के आगे !
क्या मैं उसकी निन्दक और दुश्मन हूँ
कि घिसे-पिटे ये कविता-अंश
इन उदात्त वनों और घाटियों पर
जल्दबाजी में उगल दें अपने विचार?
प्रकृति का मूल दर्शक बने रहने का
कम-से-कम एक बार तो आये विचार,
मौसम की प्रसारित रिपोर्ट में अपना
एक भी शब्द जोड़े बिना।
मेज पर हाथों को दौड़ाना भी क्या श्रम हुआ?
यह आराम है, पुरस्कार है उस यातना के लिए
जब माथे के अंधकार भरे भार को
थामते हो तुम अपने दाहिने हाथ से।
बीत गया है समय। खोलती हूँ आँखें -
लिखता ही चला जाता है मेरा हाथ।
सदा के लिए बिछुड़ गए हैं गरजते बादल,
कुरूपों के सब प्रिय विशेषण।
इस बीच सफल हो जाता है हाथ
शिशु उल्लास से अपने कापी को खींचने में।
प्रेम में, अशांति में, अवसाद में
सबका बारी-बारी से वर्णन करने में।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए
Белла Ахмадулина
Не писать о грозе
Беспорядок грозы в небесах!
Не писать! Даровать ей свободу —
не воспетою быть, нависать
над землей, принимающей воду!
Разве я ей сегодня судья,
чтоб хвалить ее: радость! услада! —
не по чину поставив себя
во главе потрясенного сада!
Разве я ее сплетник и враг,
чтобы, пристально выследив, наспех,
величавые лес и овраг
обсуждал фамильярный анапест?
Пусть хоть раз доведется уму
быть немым очевидцем природы,
не добавив ни слова к тому,
что объявлено в сводке погоды.
Что за труд — бег руки вдоль стола?
Это отдых, награда за муку,
когда темною тяжестью лба
упираешься в правую руку.
Пронеслось! Открываю глаза.
И рука моя пишет и пишет.
Навсегда разминулись — гроза
и влюбленный уродец эпитет.
Между тем удается руке
детским жестом придвинуть тетрадку
и в любви, в беспокойстве, в тоске
все, что есть, описать по порядку.
1968 г.
</poem>
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|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
मेघगर्जनाओं की फैली है अव्यवस्था आकाश में,
लिखना नहीं है मुझे कुछ भी उसके विषय में।
भेंट करनी है उसे स्वतंत्रता
अचर्चित बने रहने
और जल-ग्रहण कर रही पृथ्वी के
ऊपर लटके रहने की।
मैं क्या आज उसकी न्यायाधीश हूँ
कहूँ कि उसकी प्रशस्ति देती है आनन्द !
सम्बन्धों के ऊँच-नीच के गणित की अवज्ञा करते हुए
बैठा दूँ अपने को भयाक्रांत उद्यान के आगे !
क्या मैं उसकी निन्दक और दुश्मन हूँ
कि घिसे-पिटे ये कविता-अंश
इन उदात्त वनों और घाटियों पर
जल्दबाजी में उगल दें अपने विचार?
प्रकृति का मूल दर्शक बने रहने का
कम-से-कम एक बार तो आये विचार,
मौसम की प्रसारित रिपोर्ट में अपना
एक भी शब्द जोड़े बिना।
मेज पर हाथों को दौड़ाना भी क्या श्रम हुआ?
यह आराम है, पुरस्कार है उस यातना के लिए
जब माथे के अंधकार भरे भार को
थामते हो तुम अपने दाहिने हाथ से।
बीत गया है समय। खोलती हूँ आँखें -
लिखता ही चला जाता है मेरा हाथ।
सदा के लिए बिछुड़ गए हैं गरजते बादल,
कुरूपों के सब प्रिय विशेषण।
इस बीच सफल हो जाता है हाथ
शिशु उल्लास से अपने कापी को खींचने में।
प्रेम में, अशांति में, अवसाद में
सबका बारी-बारी से वर्णन करने में।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए
Белла Ахмадулина
Не писать о грозе
Беспорядок грозы в небесах!
Не писать! Даровать ей свободу —
не воспетою быть, нависать
над землей, принимающей воду!
Разве я ей сегодня судья,
чтоб хвалить ее: радость! услада! —
не по чину поставив себя
во главе потрясенного сада!
Разве я ее сплетник и враг,
чтобы, пристально выследив, наспех,
величавые лес и овраг
обсуждал фамильярный анапест?
Пусть хоть раз доведется уму
быть немым очевидцем природы,
не добавив ни слова к тому,
что объявлено в сводке погоды.
Что за труд — бег руки вдоль стола?
Это отдых, награда за муку,
когда темною тяжестью лба
упираешься в правую руку.
Пронеслось! Открываю глаза.
И рука моя пишет и пишет.
Навсегда разминулись — гроза
и влюбленный уродец эпитет.
Между тем удается руке
детским жестом придвинуть тетрадку
и в любви, в беспокойстве, в тоске
все, что есть, описать по порядку.
1968 г.
</poem>