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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
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<poem>
बसे रहो सदा मेरी ्चेतना में
धरती में बीज की तरह,
अम्बर में प्रणव की तरह,
सिंधु में अग्नि की तरह
हृदय में सुधियों की तरह
कण्ठ में गीत की तरह
नेत्रों में ज्योति की
परछाई में मीत की तरह
जन्म -जन्मांतर तक
कि
'''जब भी मिलना हो तुमसे'''
'''आकाश -सी बाहें फैलाकर मिलूँ'''
'''विलीन हो जाऊँ'''
'''हर जन्म में'''
'''केवल तुम में'''
जैसा आत्मा मिल जाती है
परमात्मा में।
<poem>
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बसे रहो सदा मेरी ्चेतना में
धरती में बीज की तरह,
अम्बर में प्रणव की तरह,
सिंधु में अग्नि की तरह
हृदय में सुधियों की तरह
कण्ठ में गीत की तरह
नेत्रों में ज्योति की
परछाई में मीत की तरह
जन्म -जन्मांतर तक
कि
'''जब भी मिलना हो तुमसे'''
'''आकाश -सी बाहें फैलाकर मिलूँ'''
'''विलीन हो जाऊँ'''
'''हर जन्म में'''
'''केवल तुम में'''
जैसा आत्मा मिल जाती है
परमात्मा में।
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