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|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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<Poem>
एक थी माई ! एक थी माई !
नाम था उसका हिम्मत माई !
तीस साल तक जंग चली जब
जवानों को खाने-पीने की चीज़ें बेचकर
हिम्मत माई ने ज़िन्दगी चलाई ।

जब हुई उसकी रोज़ी में कटौती
तब भी वह जंग से नहीं घबराई ।
रहे उसके साथ उसके बच्चे भी तीनों
उनके भी हिस्से उनके हिस्से की आई ।

पहला बेटा उसका बहादुराना मौत मरा
दूसरा बेटा माँ का असली मुण्डा निकला
बेटी थी उसकी बहुत अच्छी और भोली
उसके हिस्से आई एक गोली !

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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