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<poem>
जंगल में मिलता है
एक लापता पक्षी का शव

एक दिन वह
किसी गृहस्थ का घर सजाकर
उड़ जाता है
छत के किसी कोने से

समुद्र किनारे खड़ा
वह विवेकशील वैष्णव
निगल लेता है
समस्त नीलरंग

नीली आवाज़ के वेश में
उसी ने एक दिन
शुरू की थी यात्रा

इसलिए दुनिया को
रौशनी का पर्याय नहीं
सुझाया गया

स्टेशन के फ़र्श पर
अन्धेरे में नाचने लगा तब ख़ुदरा पैसा

और वह मुट्ठी खोली भी गई
पहली मर्तबा
सुबह के वक़्त
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