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एक नवजात के प्रति / नवीन कुमार

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एक नवजात के प्रति नवीन कुमार
इस सभ्य समाज में स्त्रियाँ सिर्फ घर की
या बाजार की बना नष्ट कर दी
जा रही हैं।

उत्खनन में बारीकी से संघर्षों के इतिहास
नष्ट कर दिए जा रहे हैं।
बमों की आतिशबाजी से बैबीलोन नष्ट
कर दिया जा रहा है।

बहुत सारे बच्चे वली दकनी की मजार के साथ
माँओं के भीतर ही दफ्न कर दिए गये हैं।

एक पीलियायुक्त बच्चा
इस परिवेश की परछाई लिए
जन्म लेता है।


इस बीच बहुत कुछ बदल गया है।
वे जो नहीं जानते सचमुच बहुत कुछ बदल गया है
और वे जो नाउम्मीदी से भरे जानकार हैं
इन दोनों की जमात के साथ मिलकर
दुनिया भर में
अनवरत लड़ता हूँ।
दफ्न कर दिए गए
बच्चों की आवाजें
आज नवजातों की आवाजों में
संकलित हो गयी है।

प्रतिरोधों के परिवेश की रौशनी में
पीलियायुक्त बच्चा तप कर
निखर उठा है उस रंग में
जिस रंग के बच्चे होते हैं
फिर से संघर्ष दुनिया की रवायत में शामिल हो रहा है
फिर से मुझे स्त्रियाँ सुंदर लग रही है
फिर से मैंने नज्म लिखी है।

वली दकनी के छंद
हमारी नज्मों से होकर आ रहे हैं।
</poem>
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