भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभात
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे पास फ़ोन है
मेरे अपने
मेरा फ़ोन सुनना नहीं चाहते
मेरे पास पैसा है
मेरे अपने
मेरा पैसा नहीं चाहते
मेरी पत्नी
मेरे बच्चों ने
मेरे बिना जीना सीख लिया है
अब वे विश्वास भी नहीं करना चाहते
कि मैंने नशा छोड़ दिया है
कहकर चुप हुए विजय सावन्त
तो बोले दत्ता श्रीखण्डे
आज जो तुम्हारी ज़िन्दगी है
ये ज़िन्दगी भी किसी का
सपना हो सकती है
दुख की दुनिया बहुत बड़ी है
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभात
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे पास फ़ोन है
मेरे अपने
मेरा फ़ोन सुनना नहीं चाहते
मेरे पास पैसा है
मेरे अपने
मेरा पैसा नहीं चाहते
मेरी पत्नी
मेरे बच्चों ने
मेरे बिना जीना सीख लिया है
अब वे विश्वास भी नहीं करना चाहते
कि मैंने नशा छोड़ दिया है
कहकर चुप हुए विजय सावन्त
तो बोले दत्ता श्रीखण्डे
आज जो तुम्हारी ज़िन्दगी है
ये ज़िन्दगी भी किसी का
सपना हो सकती है
दुख की दुनिया बहुत बड़ी है
</poem>