भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विंदा करंदीकर |अनुवादक=चन्द्रका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विंदा करंदीकर
|अनुवादक=चन्द्रकान्त बान्दिवडेकर
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पल्लू बाँध कर भोर जागती है...
तभी से झप-झप विचरती रहती हो
... कुर-कुर करने वाले पालने में दो अंखियाँ खिलने लगती हैं
और फिर नन्ही-नन्ही मोदक मुट्ठी से
तुम्हारे स्तनों पर आता है गलफुल्लापन,
सादा पहन कर विचरती हो
तुम्हारे पोतने से
बूढ़ा चूल्हा फिर से एक बार लाल हो जाता है
और उसके बाद उगता सूर्य रस्सी पर लटकाए
तीन गण्डतरों को सुखाने लगता है
इसीलिए तुम उसे चाहती हो !

बीच-बीच में तुम्हारे पैरों में
मेरे सपने बिल्ली की भाँति चुलबुलाते रहते हैं
उनकी गर्दनें चुटकी में पकड़ तुम उन्हें दूर करती हो
फिर भी चिड़िया-कौए के नाम से खिलाए खाने में
बचा-खुचा एकाध निवाला उन्हे भी मिलता है ।

तुम घर भर में चक्कर काटती रहती हो
छोटी बड़ी चीज़ों में तुम्हारी परछाई रेंगती रहती है
... स्वागत के लिए सुहासिनी होती हो
परोसते समय यक्षिणी
खिलाते समय पक्षिणी
संचय करते समय संहिता
और भविष्य के लिए स्वप्नसती

गृहस्थी की दस फुटी खोली में
दिन की चौबीस मात्राएँ ठीक-ठाक बिठानेवाली तुम्हारी कीमिया
मुझे अभी तक समझ में नही आई ।

'''मराठी भाषा से अनुवाद : चन्द्रकान्त बान्दिवडेकर'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits