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|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
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<poem>
मैं चाहती हूँ — इतनी ढेर-सी बर्फ़ गिरे
कि मैं चकित हो जाऊँ
इतनी चकित कि
बोल न पाऊँ
चल न पाऊँ

मैं चाहती हूँ — इतनी ढेर-सी बर्फ़ गिरे
कि वह मुझे पूरी तरह ढँक ले
कि मैं भूल जाऊँ कि
मुझे अपनी डबलरोटी खरीदना है
कि मैं भूल जाऊँ
मुझे घर जाना है

कि मैं भूल जाऊँ
कि मैं ठण्ड में ठिठुरकर मर सकती हूँ
कि मैं भूल जाऊँ
कि मृत्यु सब कुछ का अन्त है

जब बर्फ़ खूब गिरेगी
सब कुछ को ढँक देगी
डबलरोटी की
ज़रूरत ख़त्म हो जाएगी
जब बर्फ़
आकाश के
पक्षियों तक को ढँक देगी
घर की ज़रूरत
ख़त्म हो जाएगी

अगर यह अन्त है
तब तो अन्त
उससे कहीं अधिक ख़ूबसूरत है
जितना मैं सोचती थी

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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